एलईडी लाइट से कैंसर का जोखिम

एलईडी लाइट से कैंसर का जोखिम

सेहतराग टीम

बिजली की कम खपत के लिए एलईडी बल्‍ब लगाना आज के दौर में आम बात है और देश में ऊर्जा की खपत को नियंत्रि‍त करने के लिए सरकारें भी जमकर एलईडी लाइट्स का प्रचार कर रही हैं। यहां तक कि केंद्र सरकार ने तो अपने कर्मचारियों को रियायती दर पर एलईडी बल्‍ब तक बांटे ताकि बिजली की खपत को कम किया जा सके। धीरे-धीरे बाजार में भी एलईडी बल्‍ब के दाम कम हुए और अब तो हर घर में एलईडी बल्‍ब के ही जलवे हैं। किसी भी समारोह में सजावटी एलईडी बल्‍लों और सड़क के किनारे रोशनी के लिए भी एलईडी बल्‍बों का चलन जोर पकड़ चुका है। सरकार ने तो नीतिगत रूप से तय कर लिया है कि नए बल्‍ब लगाने की जहां भी जरूरत होगी वहां एलईडी बल्‍ब ही लगाए जाएंगे। मगर अब शायद इस फैसले पर सोचने की जरूरत पड़ेगी।

एलईडी स्ट्रीट लाइट और व्यावसायिक आउटडोर लाइटिंग (जैसे विज्ञापन) से निकलने वाली नीली रौशनी से स्तन कैंसर और प्रॉस्टेट कैंसर का जोखिम बढ़ सकता है। एक अध्ययन में यह चेतावनी दी गई है। 
बार्सेलोना इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हैल्थ और ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ एक्सटर के अनुसंधानकर्ताओं ने पाया कि बड़े शहरों में रहने वाले लोग जो रात के दौरान नीली रौशनी के संपर्क में बहुत ज्यादा आते हैं उन्हें प्रोस्टेट कैंसर का जोखिम 1.5 फीसदी अधिक होता है। इसके अलावा स्तन कैंसर का जोखिम भी बढ़ जाता है। इसकी तुलना उस आबादी से की गई जो नीली रौशनी के संपर्क में ज्यादा नहीं आती। 
पुराने तरीके की लाइट जो चमक देती थी वह ‘नारंगी’ स्पेक्ट्रम के दायरे में होती थी लेकिन नई आधुनिक लाइटिंग नीले रंग की तेज रौशनी देती है। 
यह शोध जर्नल एनवायरनमें टल हैल्थ पर्सपेक्टव में प्रकाशित हुआ। यूनिवर्सिटी ऑफ एक्सटर के अलेजानद्रो सानचेज दे मिगुल ने कहा कि नीली रौशनी के उच्च स्तर के कारण जैविक घड़ी गड़बड़ा जाती है।
अनुसंधानकर्ताओं को लंबे समय से यह संदेह था कि इसके कारण कैंसर का जोखिम बढ़ता है। नए निष्कर्ष इनके बीच गहरे संबंध की ओर संकेत करते हैं। उन्होंने कहा कि अब हमें यह पता लगाना चाहिए कि स्मार्ट फोन और टेबलेट से निकलने वाली नीली रौशनी के रात के वक्त संपर्क में आने से भी क्या कैंसर का जोखिम बढ़ता है। 
वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया कि एलईडी लाइटों के कारण शरीर का 24 घंटे का चक्र गड़बड़ा जाता है। इससे हार्मोन प्रभावित होते हैं। गौरतलब है कि स्तन कैंसर और प्रोस्टेट कैंसर दोनों ही हार्मोन से संबंधित हैं। 

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